मुसाफिरकाकी अपनी जिंदगी तीर्थ यात्राओं में गुजार देती है और कुंभ के मेले के दौरान जब उनकी मौत होती है तो समाज के सामने एक बड़ी चिंता होती है कि उनके शव को मुखाग्नि कौन देगा। समाज जहां बेटियों के मुखाग्नि के खिलाफ होता है वहीं एक साधु की बात कि बेटी भी मुखाग्नि दे सकती है, एक बड़ा संदेश देती है। गोवा की राज्यपाल और लेखिका मृदुला सिन्हा ने जब अरविंद महिला कॉलेज में अपनी इस कहानी का पाठ किया तो हॉल में बैठे सभी लोग कहानी को जीवंत महसूस करने लगे। अरविंद महिला कॉलेज में शनिवार को यह आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्मश्री उषा किरण खान ने की। प्राचार्य डॉ. उषा सिंह ने सभी अतिथियों काे शॉल और फलों की टोकरी देकर सम्मानित किया।
मैथिलगीतों से बांधा समां
मुसाफिरकाकी का पात्र बताते हुए महामहिम राज्यपाल मृदुला सिन्हा मैथिल गीतों में खो गईं। मृदुला कहती हैं, मिथिला में हई चारों धाम हम मिथिला में रहबई, हमरा ना चाही सुख आराम हम मिथिला में रहबई। लेखिका मृदुला कहती हैं, मुसाफिर काफी का मायका भोजपुर की तरफ था और ससुराल मिथिला में इसलिए उनके शब्दों में दोनों भाषाओं की झलक थी। मुसाफिर काकी हमेशा तीर्थ यात्रा पर ही रहती इसलिए उनका नाम मुसाफिर काकी पड़ा। वह खुद तो तीर्थ पर जाती ही साथ ही गांव की महिलाओं को भी इसमें शामिल करतीं। हर यात्रा का वृतांत सुनातीं, हर यात्रा से सबक लेतीं। गांव के लोग उनकी यात्रा वृतांत को सुनने को आतुर रहते। वह पूरे गांव की अपनी थी, सबके लिए कुछ ना कुछ लेकर आती। अंतिम समय में भी वह कुंभ के मेले में थीं जब उनके जीवन का अंत हुआ।
मेरी बेटी मेरा अभिमान
कहानीके बाद छात्र छात्राओं ने महामहिम से कहानी को लेकर संवाद किए। हिन्दी विभाग की तरफ से आयोजित इस कार्यक्रम में बेटियों के उत्थान के लिए मेरी बेटी मेरा अभिमान पर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो बी मौर्या ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम में प्रो. पूनम चौधरी, प्रॉक्टर डॉ. उषा झा, निवेदिता झा, डॉ. मंगला रानी, डॉ. सरिता, प्रभा मिश्रा, शशि सरोजिनी आदि मौजूद थीं।
अरविंद महिला कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम में गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा को सम्मानित करतीं कॉलेज की प्राचार्य डॉ. उषा सिंह एवं कार्यक्रम में मौजूद साहित्यकार डॉ. उषा किरण खान।